Feb 18, 01:50 am
रमेश शुक्ला 'सफर', अमृतसर
पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं का भी क्या भाग्य है कि मौत के बाद मोक्ष के लिए उनको भारत के लिए वीजा का इंतजार करना पड़ा रहा है। वीजा न मिलने के कारण पाकिस्तान में रहने वाले सैकड़ों हिंदू अपने परिजनों की मौत के सालों बाद भी उनकी अस्थियों को हरिद्वार में विसर्जित नहीं कर पा रहे।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा को तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं होता जब तक अस्थियों का हरिद्वार में पूर्ण धार्मिक कर्मकांड के अनुसार विसर्जन न हो जाए।
हरिद्वार में अपने 135 परिजनों की अस्थियों के विसर्जन के बाद पाक लौट रहे हिंदुओं के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अभी भी सैकड़ों हिंदुओं की अस्थियां गंगा में प्रवाहित होने का इंतजार कर रही हैं।
वीरवार को समझौता एक्सप्रेस से वापस लौटने से पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत के निवासी महंत रामनाथ ने बताया कि पाक से 13 लोग 135 मृतकों की अस्थियां लेकर गंगा में प्रवाहित करने के लिए आए थे। हरिद्वार में 15 दिनों तक कर्मकांड व पूजा अर्चना की, सिर मुंडवाया और सामूहिक तेरहवीं की। तीन दिन तक भोज का आयोजन भी किया गया।
पाकिस्तान की बात करते हुए महंत ने बताया कि वहां हिंदू परिवारों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। हिंदू परिवारों को तो मृतक के दाह संस्कार के लिए भी जिला प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती है। मृतकों के परिजन सरकार से कई सालों से वीजा की मांग कर रहे हैं ताकि जो अस्थियां पड़ी हैं उन्हें भारत ले जाकर गंगा में विसर्जित किया जा सके। कई अस्थियां तो पिछले 40 सालों से पड़ी थीं जिन्हें अब जाकर मोक्ष मिला है, जबकि सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने परिजनों की अस्थियां लाने के लिए वीजा नहीं मिल रहा।
महंत राम नाथ के साथ आए जीवन ने बताया कि उनके पिता रामजीवन की मौत 1976 में हुई थी। करीब 34 सालों के बाद उनकी अस्थियां हरिद्वार आकर प्रवाहित कीं और कर्मकांड पूरा किया। अस्थियों के गंगा में विसर्जित होने के इंतजार में उसकी मां गायत्री भी 1980 में चल बसी थीं। ऐसे में माता-पिता दोनों की अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने के बाद अब उसे लगता है कि उसने जिंदगी का सबसे बड़ा काम किया है।
पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं का भी क्या भाग्य है कि मौत के बाद मोक्ष के लिए उनको भारत के लिए वीजा का इंतजार करना पड़ा रहा है। वीजा न मिलने के कारण पाकिस्तान में रहने वाले सैकड़ों हिंदू अपने परिजनों की मौत के सालों बाद भी उनकी अस्थियों को हरिद्वार में विसर्जित नहीं कर पा रहे।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा को तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं होता जब तक अस्थियों का हरिद्वार में पूर्ण धार्मिक कर्मकांड के अनुसार विसर्जन न हो जाए।
हरिद्वार में अपने 135 परिजनों की अस्थियों के विसर्जन के बाद पाक लौट रहे हिंदुओं के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अभी भी सैकड़ों हिंदुओं की अस्थियां गंगा में प्रवाहित होने का इंतजार कर रही हैं।
वीरवार को समझौता एक्सप्रेस से वापस लौटने से पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत के निवासी महंत रामनाथ ने बताया कि पाक से 13 लोग 135 मृतकों की अस्थियां लेकर गंगा में प्रवाहित करने के लिए आए थे। हरिद्वार में 15 दिनों तक कर्मकांड व पूजा अर्चना की, सिर मुंडवाया और सामूहिक तेरहवीं की। तीन दिन तक भोज का आयोजन भी किया गया।
पाकिस्तान की बात करते हुए महंत ने बताया कि वहां हिंदू परिवारों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। हिंदू परिवारों को तो मृतक के दाह संस्कार के लिए भी जिला प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती है। मृतकों के परिजन सरकार से कई सालों से वीजा की मांग कर रहे हैं ताकि जो अस्थियां पड़ी हैं उन्हें भारत ले जाकर गंगा में विसर्जित किया जा सके। कई अस्थियां तो पिछले 40 सालों से पड़ी थीं जिन्हें अब जाकर मोक्ष मिला है, जबकि सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने परिजनों की अस्थियां लाने के लिए वीजा नहीं मिल रहा।
महंत राम नाथ के साथ आए जीवन ने बताया कि उनके पिता रामजीवन की मौत 1976 में हुई थी। करीब 34 सालों के बाद उनकी अस्थियां हरिद्वार आकर प्रवाहित कीं और कर्मकांड पूरा किया। अस्थियों के गंगा में विसर्जित होने के इंतजार में उसकी मां गायत्री भी 1980 में चल बसी थीं। ऐसे में माता-पिता दोनों की अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने के बाद अब उसे लगता है कि उसने जिंदगी का सबसे बड़ा काम किया है।
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